Tuesday, July 26, 2011

अपनी जिंदगी का किस्सा.

Very aptly covered by Javed Akhar sahab's poetry from ZNMD.

जब जब ददॅ का बादल छाया,


जब ग़म का साया लहराया,

जब आंसू पलकों तक आया,

जब ये तनहा दिल घबराया,

हमने दिल को ये समझाया,

दिल आखिर तू क्यों रोता है,

दुनियाँ में यूँही होता है,



ये जो गेहरे सन्नाटे हैं,

वक्त ने सबको ही बाँटे हैं,

थोडा ग़म है सबका किस्सा,

थोड़ी धूप है सबका हिस्सा,

आंख तेरी बेकार ही ऩम है,

हर पल एक नया मौसम है,

क्यों तू ऐसे पल खोता है,

दिल आखिर तू क्यों रोता है.